आलोचना >> चक्रधर की साहित्यधारा चक्रधर की साहित्यधाराबलभद्रदुर्गा प्रसाद
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प्रस्तुत पुस्तक से मार्कण्डेय के आलोचक- व्यक्तित्व का पहलू पाठकों के सामने खुलेगा
मार्कण्डेय आजादी के बाद हिन्दी साहित्य के इतिहास में सम्भवत: पहले टिप्पणीकार थे। इस बात का पता तब चला जब कल्पना' पत्रिका में साहित्यधारा स्तम्भ लिखनेवाले चर्चित चक्रधर का राज खुला। यानी चक्रधर कोई और नहीं मार्कण्डेय ही थे।
प्रस्तुत पुस्तक से मार्कण्डेय के आलोचक- व्यक्तित्व का पहलू पाठकों के सामने खुलेगा। साहित्य-जगत् में इस पुस्तक का अपना एक ऐतिहासिक महत्त्व भी होगा।
इन टिप्पणियों का समय १९५० से ६० ई. के बीच का है जो आजादी के तुरन्त बाद पड़ता है। आजादी की इस घटना का जीवन के हर पहलू पर व्यापक असर पड़ा, साहित्य भी इससे अछूता नहीं था। इस पूरे बदलते हुए समय, समाज, संस्कृति और साहित्य को मार्कण्डेय ने अपने नजरिये से देखा-समझा और बेबाक टिप्पणियाँ लिखीं जो आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।
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